होलिका दहन व्रत कथा | Holika Dahan Katha
🙏 होलिका दहन की पौराणिक कथा 🙏 बहुत समय पहले की बात है, दैत्यों का राजा हिरण्यकश्यप अत्यंत शक्तिशाली और अहंकारी था। उसने कठोर तपस्या ...
पढ़ें →एक लपसी था और एक तपसी था। तपसी हमेशा भगवान की तपस्या में लीन रहता था। लपसी रोज़ सवा सेर की लपसी बनाकर भगवान का भोग लगाकर ग्रहण कर लेता था।
एक दिन दोनों में झगड़ा हो गया। तपसी बोला, "मैं रोज़ भगवान की तपस्या करता हूँ, इसलिए मैं बड़ा हूँ।" लपसी बोला, "मैं रोज़ भगवान को सवा सेर लपसी का भोग लगाता हूँ, इसलिए मैं बड़ा हूँ।"
तभी नारद जी वहाँ से गुजर रहे थे। दोनों को लड़ते देख उन्होंने पूछा, "तुम लोग क्यों लड़ रहे हो?" तपसी ने अपने बड़ा होने का कारण बताया और लपसी ने अपना कारण बताया। नारद जी बोले, "तुम्हारा फैसला मैं कर दूँगा।"
अगले दिन लपसी और तपसी स्नान करके अपनी-अपनी भक्ति करने आए। नारद जी ने छिपकर सवा करोड़ की एक-एक अंगूठी दोनों के सामने रख दी। तपसी की नजर जब अंगूठी पर पड़ी तो उसने चुपचाप अंगूठी उठा कर अपने नीचे दबा ली। लपसी ने अंगूठी देखी, पर उसने ध्यान नहीं दिया और भगवान को भोग लगाकर लपसी खाने लगा।
नारद जी सामने आए तो दोनों ने पूछा, "कौन बड़ा?" नारद जी ने तपसी से खड़ा होने को कहा। जब वह खड़ा हुआ तो उसके नीचे दबा अंगूठी दिखाई पड़ी। नारद जी ने कहा, "तपस्या करने के बाद भी तुम्हारी चोरी करने की आदत नहीं गई; इसलिए लपसी बड़ा है, और तुम्हें तुम्हारी तपस्या का फल भी नहीं मिलेगा।"
तप्तसी शर्मिंदा होकर माफी माँगने लगा और उसने नारद जी से पूछा, "मुझे मेरी तपस्या का फल कैसे मिलेगा?" नारद जी ने कुछ बातें कही—उन्हें उदाहरण के रूप में बताया कि अच्छे आचार-व्यवहार भी आवश्यक हैं। (कथा में आगे कहा गया:)
यही से लोगों ने अपने व्रत, कथा और भक्ति के साथ लपसी—तपसी की यह कहानी भी सुननी और सुनाना शुरू कर दिया।