होलिका दहन व्रत कथा | Holika Dahan Katha
🙏 होलिका दहन की पौराणिक कथा 🙏 बहुत समय पहले की बात है, दैत्यों का राजा हिरण्यकश्यप अत्यंत शक्तिशाली और अहंकारी था। उसने कठोर तपस्या ...
पढ़ें →एक साहूकार की दो बेटियाँ थीं। दोनों बेटियाँ पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। बड़ी बेटी पूर्ण व्रत करती थी, पर छोटी बेटी अधूरा व्रत रखती थी। विवाह के योग्य होने पर साहूकार ने अपनी दोनों बेटियों का विवाह कर दिया। बड़ी बेटी के यहाँ समय पर स्वस्थ संतान का जन्म हुआ। छोटी बेटी के यहाँ भी संतान का जन्म हुआ, परन्तु उसकी संतान जन्म लेते ही प्राण त्याग बैठी। दो-तीन बार ऐसा होने पर उसने एक ब्राह्मण को बुलाकर अपनी व्यथा बतलाई और धार्मिक उपाय पूछे।
उसकी सारी बात सुनकर और कुछ प्रश्न पूछने के बाद ब्राह्मण ने कहा, "तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत रखती हो, इसलिए तुम्हारा व्रत फलित नहीं होता; तुम्हें अधूरे व्रत का दोष लगा है।" ब्राह्मण की बात सुनकर छोटी बेटी ने पूर्णिमा व्रत पूरे विधि-विधान से करने का संकल्प लिया।
लेकिन पूर्णिमा आने से पहले ही उसे एक पुत्र का जन्म हो गया। जन्म लेते ही पुत्र की मृत्यु हो गई। संताने के शव को उसने एक पीढ़े पर रख दिया और ऊपर से एक कपड़ा इस तरह ढका कि किसी को पता न चले। फिर उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाकर कहा कि बैठने के लिए यही पीढ़ा ले लो। जैसे ही बड़ी बहन उस पीढ़े पर बैठी, उसके लहंगे की किनार बच्चे को छू गई और बच्चा जीवित होकर जोर से रोने लगा।
इस पर बड़ी बहन पहले भयभीत हुई, फिर छोटी बहन पर क्रोध करते हुए बोली, "क्या तुम मुझ पर बच्चे की हत्या का दोष और कलंक लगाना चाहती हो? क्या मेरे बैठने से यह बच्चा मरता?" छोटी बहन ने उत्तर दिया, "दीदी, यह बच्चा पहले से ही मृतप्राय था; तुम्हारे तप और पवित्र स्पर्श के कारण यह जीवित हो गया है। पूर्णिमा के दिन जो व्रत और तप तुम करती हो, उसके कारण तुम दिव्य तेज से परिपूर्ण और पवित्र हो गई हो।"
अब मैं भी तुम्हारी भांति व्रत और पूजन करूंगी। इसके बाद छोटी बहन ने पूर्णिमा व्रत विधिपूर्वक रखा और इस व्रत के महत्व व फल का पूरे नगर में प्रचार किया। जिस प्रकार माँ लक्ष्मी और श्रीहरि ने साहूकार की बड़ी बेटी की कामना पूर्ण करके उसे सौभाग्य प्रदान किया, वैसे ही वे हम पर भी कृपा करें।