चित्रगुप्त आरती | Chitragupta Aarti

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परिचय

श्री चित्रगुप्त जी को कर्मों के लेखा‑जोखा रखने वाले और न्याय के अध्यादेशक माना जाता है। वे वैकुंठ के न्यायाधीश स्वरूप हैं जिनके समक्ष जीवों के अच्छे‑बुरे कर्म लिखे जाते हैं; इसलिए उनकी आराधना से पाप‑पुण्य की शुद्धि, सही निर्णय और जीवन में व्यवस्था की प्राप्ति की कामना की जाती है। पारंपरिक रूप से चित्रगुप्तजी को कलम, दवात, पत्रिका, तिल/तेल आदि से सम्मान करने की प्रथा है। नीचे मैंने आपकी दी हुई आरती को श्रद्धा‑भाव से पढ़ने‑योग्य, साफ‑सुथरे छन्दों में व्यवस्थित करके दे दिया है — श्रद्धा से पढ़ें या गायें।

चित्रगुप्त आरती | Chitragupta Aarti

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॥ श्री चित्रगुप्त आरती ॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे। स्वामी जय चित्रगुप्त हरे।
भक्तजनों के इच्छित फल को पूर्ण करे॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…

विघ्न विनाशक मंगलकर्ता, संत न सुखदायी।
भक्तों के प्रतिपालक, त्रिभुवन यश छायी॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…

रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत, पीताम्बर राजै।
मातु इरावती, दक्षिणा, वाम अंग साजै॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…

कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक, प्रभु अन्तर्यामी।
सृष्टि संभालन, जन दुःख हारन, प्रकट भये स्वामी॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…

कलम, दवात, शंख, पत्रिका, कर में अति सोहै।
वैजयन्ती वनमाला, त्रिभुवन मन मोहै॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…

विश्व न्याय का कार्य सम्भाला, ब्रह्मा हर्षाये।
कोटि-कोटि देवता तुम्हारे, चरणन में धाये॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…

नृप सुदास अरु भीष्म पितामह, याद तुम्हें कीन्हा।
वेग, विलम्ब न कीन्हौं, इच्छित फल दीन्हा॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…

दारा, सुत, भगिनी, सब अपने स्वास्थ के कर्ता।
जाऊँ कहाँ शरण में किसकी, तुम तज मैं भर्ता॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…

बन्धु, पिता तुम स्वामी, शरण गहूँ किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…

जो जन चित्रगुप्त जी की आरती प्रेम सहित गावै,
चौरासी से निश्चित छूटैं, इच्छित फल पावैं॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…

न्यायाधीश वैकुंठ निवासी, पाप पुण्य लिखते।
‘नानक’ शरण तिहारे, आसन दूजी करते॥
ॐ जय चित्रगुप्त हरे…