मानसा माता आरती | Mansa Mata / Mansa Devi Aarti
॥ आरती — मानसा माता ॥ जय मानसा माता, करुणा की मूरत प्यारी। साँप-रक्षक, संकट हरने वाली, हो जीवन में उजियारी। ॥जय माता॥ तेरी असीम दया स...
पढ़ें →॥ आरती — कुंजबिहारी की (श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी) ॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।
गले में बैजन्ती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नन्दलाला।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली, भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चन्द्र सी झलक;
ललित छवि श्यामा प्यारी की — श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।
आरती कुंजबिहारी की — श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दर्शन को तरसैं।
गगन से सुमन रास बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मृदंग, ग्वालिन संग।
अतुल रति गोप‑कुमारी की — श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।
आरती कुंजबिहारी की — श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
जहाँ ते प्रकट हुई गंगा, कलुष‑किलह harini — श्रीगंगा।
स्मरण से होत मोह भंग; बसी शिव‑सीस जटा के बीच, हरै अघ कीच।
चरन छवि श्री वनवारी की — श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।
आरती कुंजबिहारी की — श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनु, बज रही वृंदावन बेनू।
चहुं दिसि गोपि‑ग्वाल‑धेनु, हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद।
कटत भव‑फंद — टेर सुनें दीन‑भिखारी की।
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की — आरती कुंजबिहारी की॥
मोदक, खीर, चूरमा — सुवर्ण थाल भरे, सेवक भोग लगावत।
झांझ, कटोरा, घड़ियाल, शंख‑मृदंग — भक्त आरती गावै, जय‑जयकार करै।
जो ध्यावे फल पावे, सब दुःख से उबरे; सेवक निज मुख से “श्री श्याम‑श्याम” उचरे।
आरती कुंजबिहारी की — श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
तन‑मन‑धन सब कुछ है तेरा, हो बाबा सब कुछ है तेरा;
तेरा तुझको अर्पण — क्या लोग मेरा।
जय श्री श्याम हरे — बाबा जी श्री श्याम हरे; निज भक्तों के तुमने पूर्ण काज करै।
आरती कुंजबिहारी की — श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥