नवग्रह चालीसा | Navgrah Chalisa
॥ दोहा ॥ श्री गणपति गुरुपद कमल, प्रेम सहित सिरनाय। नवग्रह चालीसा कहत, शारद होत सहाय जय। जय रवि शशि सोम बुध, जय गुरु भृगु शनि राज। जयति र...
पढ़ें →॥ दोहा ॥
श्री राधे वृषभानुजा, भक्तनि प्राणाधार।
वृन्दावनविपिन विहारिणी, प्रणवों बारंबार॥
जैसो तैसो रावरौ, कृष्ण प्रिया सुखधाम।
चरण शरण निज दीजिये, सुन्दर सुखद ललाम॥
॥ चौपाई / चालीसा ॥
जय वृषभान कुँवरि श्री श्यामा — कीरति नंदिनि शोभा धामा।
नित्य बिहारिनि श्याम अधारा — अमित मोद मंगल दातारा।
रास विलासिनि रस विस्तारिनी — सहजचरि सुभग युथ मन भावनी।
नित्य किशोरी राधा गोरी — श्याम प्राणधन अति जिय भोरी।
करुणा सागर हिय उमंगिनि — ललितादिक सखियन की संगिनी।
दिन कर कन्या कूल बिहारिनि — कृष्ण प्राण प्रिय हिय हुलसावनि।
नित्य श्याम तुमरौ गुण गावें — राधा राधा कहि हरषावें।
मुरली में नित नाम उचारे — तुव कारण प्रिया वृषभानु दुलारी।
नवल किशोरी अति छवि धामा — द्युति लघु लगै कोटि रति कामा।
गौरांगी शशि निंदक बढ़ना — सुभग चपल अनियारे नयना।
जावक युग युग पंकज चरना — नूपुर धुनि प्रीतम मन हरना।
संतत सहचरि सेवा करहीं — महा मोद मंगल मन भरहीं।
रसिकन जीवन प्राण अधारा — राधा नाम सकल सुख सारा।
अगम अगोचर नित्य स्वरूपा — ध्यान धरत निशदिन ब्रज भूपा।
उपजेउ जासु अंश गुण खानी — कोटिन उमा रमा ब्रह्मानी।
नित्यधाम गोलोक विहारिनी — जन रक्षक दुख दोष नसावनि।
शिव अज मुनि सनकादिक नारद — पार न पायें शेष अरु शारद।
राधा शुभ गुण रूप उजारी — निरखि प्रसन्न होत बनवारी।
ब्रज जीवन धन राधा रानी — महिमा अमित न जाय बखानी।
प्रीतम संग देई गलबाँही — बिहरत नित्य वृन्दावन माँही।
राधा कृष्ण कृष्ण कहैं राधा — एक रूप दोउ प्रीति अगाधा।
श्री राधा मोहन मन हरनी — जन सुख दायक प्रफुलित बदनी।
कोटिक रूप धरें नंद नन्दा — दर्श करन हित गोकुल चन्दा।
रास केलि करि तुम्हें रिझावें — मान करौ जब अति दुख पावें।
प्रफुलित होत दर्श जब पावें — विविध भाँति नित विनय सुनावें।
वृन्दारण्य बिहारिनि श्यामा — नाम लेत पूरण सब कामा।
कोटिन यज्ञ तपस्या करहू — विविध नेम व्रत हिय में धरहू।
तऊ न श्याम भक्तहिं अपनावें — जब लगि राधा नाम न गावे।
वृन्दाविपिन स्वामिनी राधा — लीला बपु तब अमित अगाधा।
स्वयं कृष्ण पावैं नहिं पारा — और तुम्हैं को जानन हारा।
श्री राधा रस प्रीति अभेदा — सारद गान करत नित वेदा।
राधा त्यागि कृष्ण को भेजिहैं — ते सपनेहु जग जलधि न तरिहैं।
कीरति कुँवरि लाड़िली राधा — सुमिरत सकल मिटहिं भव बाधा।
नाम अमंगल मूल नसावन — त्रिविध ताप हर हरि मन भावन।
राधा नाम लेइ जो कोई — सहजहि दामोदर बस होई।
राधा नाम परम सुखदाई — भजतहिं कृपा करहिं यदुराई।
यशुमति नन्दन पीछे फिरिहैं — जो कोउ गधा नाम सुमिरिहैं।
राम विहारिन श्यामा प्यारी — करहु कृपा बरसाने वारी।
वृन्दावन है शरण तिहारौ — जय जय जय वृषभानु दुलारी।
॥ दोहा ॥
श्रीराधा सर्वेश्वरी, रसिकेश्वर घनश्याम।
करहुँ निरंतर बास मैं, श्रीवृन्दावन धाम॥